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Yogita banam Aarashan योगिता बनाम आरक्षण

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गुणा नर्चन्ति जंतुनां न जातीं केवलां क्वचित् । स्फाटिकं भाजन भग्नं का किण्यापि न गृहयते ।।
राष्ट्र कवि दिनकर के शब्दों में:-
“जय हो जग में जले जहाँ भी नमन पुनीत अनल को जिस नर में भी बसे हमारा नमन तेज को बल को”
मनुष्य को ईश्वर प्रदत्त गुणों में योग्यता भी एक गुण है। अंग्रेजी में इसे प्रायः ऐबिलीटी से जाना जाता है। चूंकि यह शब्द के भेदों में से एक भेद विशेषण की श्रेणी में आयेगा अतः इसके भी तीन प्रकार होंगे:-
सामान्य, तुलनात्मक और विशिष्ट जिसे अंग्रेजी में सिम्पल, कमपेयरेटिव और सुपर लेटिव से जाना जाता है। अंग्रेजी भाषा में इसे डिग्री कहा जाता है। उपरोक्त बातें पढ़ने-लिखने वाले भली प्रकार से जानते हैं। प्रश्न उठता है
कि जिस बात का ज्ञान प्रायः जब सभी रखते हैं तब इसकी चर्चा क्यों? चर्चा इसलिए कि योग्यता को भी हम अंग्रेजी के विशेषण की डिग्रीयों के दृष्टिकोण से तीन शब्दों द्वारा व्यक्त कर सकते हैः- यथा योग्य, प्रवीण और दक्ष । यह मेरा दृष्टिकोण है। दूसरे विचारकों का मत इससे भिन्न हो सकता है, किन्तु भाव एक ही होंगे। जैसे योग्य, योग्यत्तर और योग्यतम । मैंने योग्य को योग्य ही माना है, किन्तु योग्यत्तर को प्रवीण और योग्यतम को दक्ष से व्यक्त करने की इच्छा रखी है।

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गुणा नर्चन्ति जंतुनां न जातीं केवलां क्वचित् । स्फाटिकं भाजन भग्नं का किण्यापि न गृहयते ।।
राष्ट्र कवि दिनकर के शब्दों में:-
“जय हो जग में जले जहाँ भी नमन पुनीत अनल को जिस नर में भी बसे हमारा नमन तेज को बल को”
मनुष्य को ईश्वर प्रदत्त गुणों में योग्यता भी एक गुण है। अंग्रेजी में इसे प्रायः ऐबिलीटी से जाना जाता है। चूंकि यह शब्द के भेदों में से एक भेद विशेषण की श्रेणी में आयेगा अतः इसके भी तीन प्रकार होंगे:-
सामान्य, तुलनात्मक और विशिष्ट जिसे अंग्रेजी में सिम्पल, कमपेयरेटिव और सुपर लेटिव से जाना जाता है। अंग्रेजी भाषा में इसे डिग्री कहा जाता है। उपरोक्त बातें पढ़ने-लिखने वाले भली प्रकार से जानते हैं। प्रश्न उठता है
कि जिस बात का ज्ञान प्रायः जब सभी रखते हैं तब इसकी चर्चा क्यों? चर्चा इसलिए कि योग्यता को भी हम अंग्रेजी के विशेषण की डिग्रीयों के दृष्टिकोण से तीन शब्दों द्वारा व्यक्त कर सकते हैः- यथा योग्य, प्रवीण और दक्ष । यह मेरा दृष्टिकोण है। दूसरे विचारकों का मत इससे भिन्न हो सकता है, किन्तु भाव एक ही होंगे। जैसे योग्य, योग्यत्तर और योग्यतम । मैंने योग्य को योग्य ही माना है, किन्तु योग्यत्तर को प्रवीण और योग्यतम को दक्ष से व्यक्त करने की इच्छा रखी है।

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