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Yathaprasang by Namvar Singh, Ed. Ashish Tripathi

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हिन्दी क्षेत्र में फासीवाद इसलिए ताकतवर हो सका है, क्योंकि शिक्षित लोग सुपढ़ होने के बजाय कुपढ़ हुए हैं। उन्होंने परम्परा, संस्कृति, धर्म, आधुनिकता, ज्ञान-विज्ञान—सबकी अतार्किक और अतिरेकी सम्प्रदायवादी-फासीवादी व्याख्याओं पर भरोसा किया है। इसलिए शिक्षित लोगों के पास जाना और उनसे बात करना जरूरी है। उनके बीच जाकर धर्मनिरपेक्ष, लोकतांत्रिक, प्रगतिशील और जनवादी विचारों को पहुँचाना जरूरी है। उनके दिमागों में छाए हुए वैचारिक जालों को साफ करना जरूरी है। इस बात की जरूरत को प्रगतिशील आन्दोलन और नामवर जी बहुत गम्भीरता से समझते थे। इसीलिए अपने हजारों व्याख्यानों के माध्यम से नामवर जी ने प्रगतिशील नवजागरण को आगे बढ़ाया। कहना न होगा कि नामवर सिंह आधुनिक हिन्दी के सबसे बड़े संवादी हैं। जिस अर्थ में महात्मा गांधी आधुनिक भारत के। वाद-विवाद संवाद को अनिवार्य मानते हुए संवाद के प्रत्येक रूप के लिए प्रस्तुत। संवादी आलोचक। साहित्य-समाज में छिड़ी चर्चाओं में अपनी मान्यताओं और तर्कों के साथ उपस्थित होकर उनमें अपने ढंग से हस्तक्षेप करना उन्हें जरूरी लगता था। रुचिकर भी।

वाद-विवाद संवाद की इस प्रक्रिया में नामवर जी ने साहित्यिक और साहित्येतर विषयों, व्यक्तियों और प्रकरणों पर अपने विचार विस्तार से व्यक्त किये। कहना न होगा कि इस प्रक्रिया में वे साहित्यिक आलोचक की सीमित परिधि से बाहर निकलकर हिन्दी समाज में एक विचारक के तौर पर उभरे।

यह मुख्यतः नामवर जी के व्याख्यानों का संकलन है, कुछ महत्त्वपूर्ण साक्षात्कार भी इसमें शामिल हैं। इस पुस्तक में संकलित सामग्री से गुजरते हुए आप नामवर जी की प्रतिभा के विविध आयामों से संवाद कर सकेंगे।

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Weight 450 g
Dimensions 22 × 15 × 3 cm
Book Author

,

Publisher

Language

Pages

320

Binding

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