Description
हमारे देहात में सावन का महीना लड़कियों के जीवन में महत्वपूर्ण स्थान रखता है। जिन लड़कियों की इसी वर्ष शादियाँ हुई होती है। उनके लिए उनके ससुराल से ढेर सारी मिठाईयाँ एवं तोहफें भेजे जाते है, जिसे सिंधारा कहते हैं। सिंधारे का त्यौहार हरियाली तीज के ठीक एक दिन पहले मनाया जाता है। इसी महीने में रक्षा बंधन का त्यौहार भी मनाया जाता है। जो भाई-बहन के रिश्तों को प्रगाढ़ करता है कुछ दिनों बाद जन्माष्टमी मनाई जाती है। जिसके एक दिन बाद गुगा पीर का मेला लगता है। गूगा पीर के मेले के बाद लड़कियाँ अपने-अपने ससुराल चली जाती है। वहाँ से लौटकर अपनी सहेलियों एवं माँ को ससुराल का हाल-चाल ब्यान करती है। इसी तरह की प्रत्येक घटना को गाँव-देहात में लोक गीतों द्वारा व्यक्त किया जाता है। जो शादी-ब्याह और त्यौहारों के शुभ अवसर पर ये गीत अक्सर गाये बजाये जाते हैं।
ऐसे ही गीतों को संकलन करके यहाँ प्रस्तुत करने का प्रयास किया जा रहा है। लोक कथाओं के दो संकलनों के बाद, यह रतन लाल यादव का यह पहला लोकगीत संकलन है।
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