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Original price was: ₹300.00.₹270.00Current price is: ₹270.00. incl. GST
Looking for coupon codes? See ongoing discounts“यह पुस्तक पितृसत्ता की लगभग सभी वैधानिक और संवैधानिक अभिव्यक्तियों पर लिपटे आवरणों को तार-तार करती जाती है। विधि सम्बन्धी स्त्री-विमर्श दीर्घकालीन संघर्ष में महत्त्वपूर्ण औज़ार की तरह इस्तेमाल हो सकता है।”
—(‘हंस’; जून, 2000)
“ ‘उत्तराधिकार बनाम पुत्राधिकार’ पढ़कर स्वयं को एक लोकतांत्रिक राष्ट्र की आधुनिक नारी समझने का नशा हिरण हो जाता है। विश्वसुन्दरी, अधिकारी, प्रबन्धक, वर्किंग वूमेन या घर की लक्ष्मी, जो भी हो, तुम होश में आओ…इस किताब को पढ़ो; आधुनिक, आज़ादी और बराबरी के सारे दावों की हवा निकल जाएगी। यह किताब ख़ौफ़नाक तथ्यों की तह तक उजागर करती है।”
—(‘नई दुनिया’, इन्दौर; 8 जुलाई, 2000)
“इस पूरी पुस्तक को पढ़ने पर अरविन्द की यह बात सही मालूम होती है कि बीसवीं सदी के आरम्भ से लेकर अब तक अदालत, क़ानून और न्याय की भाषा-परिभाषा मूलत: स्त्री के प्रति अविश्वास, घृणा और अपमान से उपजी भाषा है।”
—(‘साक्षात्कार’, अगस्त, 2000)
“इस पुस्तक ने औरत की पक्षधर लोकतंत्र की चार सत्ताओं को बेनक़ाब कर दिया। इसने इस तथ्य को पुन: स्थापित किया कि पुरुष नि:स्वार्थ भाव से, पुरुष दमन से मुक़ाबले के लिए, औरत का रक्षाकवच और उसके दमन के विरुद्ध लावा बन सकता है।
—(‘दैनिक नवज्योति’, जयपुर; 16 सितम्बर, 2000)
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Weight | 400 g |
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Dimensions | 22 × 14 × 2 cm |
Book Author | |
Publisher | |
Language | |
Pages | 160 |
Binding | |
Condition |
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