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UMR JAISE NADI HO GAYI (उम्र जैसे नदी हो गयी)

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सम्मान्य मित्रों, अपने दो गीतिका शतक संकलनों ‘दृगों में इक समंदर है’ और ‘मृग कस्तूरी हो जाना’ के बाद गीतिका-सृजन की अपनी संकल्प-यात्रा का यह तीसरा पुष्प ‘उम्र जैसे नदी हो गई’ आपके हाथों में सौपते हुए हर्षित हूँ। समय के साथ साथ आज हिन्दी काव्य की दिशा भी बदली है, नये बिम्ब, नये प्रतीक, नवल दृष्टि और नव -विधा के विविध रूप निरंतर प्रकट हो रहे हैं। महाप्राण निराला से आरम्भ हुई ‘गीतिका’ की स्वतंत्र अभिव्यक्ति आज बहुत आगे बढ़ चुकी है। निराला जी ने गीतिका छंद से इतर अपने प्रगीतों को ‘गीतिका’ शीर्षक देकर इस नव्य काव्य की विधा का शंख फेंक दिया था। बाद में लोकप्रिय कवि गोपालदास नीरज जी ने गज़ल को हिन्दी की स्वतंत्र विधा के रूप में प्रतिष्ठित किया। कवि दुष्यंत कुमार ने गज़ल को पारंपरिक दुरूह बाग्जाल से निकालकर जीवन के विभिन्न पहलुओं से जोड़ा। उनकी रचनाओं में हिन्दी गीतिका के स्वर उभरे हैं, भले ही उन्हें गज़ल कहकर पुकारा गया हो बाद के हिन्दी के अनेक रचनाकारों के मुक्तकों और गीतों में गीतिका सृजन का सरोकार प्रमुख रूप से मुखरित हुआ। आज ‘गीतिका’ हिन्दी की एक स्वतंत्र काव्य-विधा के रूप में उभरी है। यह गीतिका न तो पुराना गीतिका छंद है और न पुराना हरिगीतिका छंद । हां, इन दोनों छंदों पर आधारित गीतिकाएं भी लिखी जा रही हैं, किन्तु ऐसी गीतिका का स्वतंत्र अस्तित्व है। आज शताधिक रचनाकार गीतिकाएं लिख रहे हैं। गीतिका गज़ल नही है, उसके समानांतर एक समरूप विधा है। गीतिका सहज निर्झरणी की तरह भी प्रवहमान है और विविध छंदों पर भी आधारित है. इसके दोनों स्वरुप प्रचलित हैं, गीतिका हिन्दी की एक सम्पूर्ण काव्य-विधा है और यह मात्रिक, वार्णिक, छान्दस, गे एवं लयात्मक है। चार दशक से अधिक समय से गीतिका लिखने का मेरा यह प्रयास आज भी जारी है, मैंने कभी गज़ल नहीं लिखी क्योंकि वर्ष 1972 से ही जब पहली गीतिका लिखी थी, मेरा यह मानना रहा है कि गीतिका और गज़ल में साम्य होते हुए भी दोनों अलग अलग विधाएं हैं। गजल उर्दू व्याकरण पर आधारित है और गीतिका का आधार हिन्दी व्याकरण है। गीतिका के अपने मानदंड हैं-मापनी, मात्रा-भार एवं छन्द पर आधारित अथवा सहज प्रवाही गीतिका, गीतिका में लयात्मकता और गेयता प्रमुख है. गज़ल का एक निश्चित प्रारूप है, जो इससे भिन्न है। यह कतई आवश्यक नहीं कि गीतिका में क्लिष्ट हिन्दी शब्दों का प्रयोग हो । गीतिका एक लोकप्रिय, मधुर और गेयता प्रधान अभिव्यक्ति है। गज़ल की भांति इसमें कठोर अनुशासन नहीं है, गीतिका अपेक्षाकृत लचीली काव्य-विधा है। इसमें बोलचाल के शब्द चाहे वे किसी भी भाषा के क्यों न हों समाहित किये जा सकते हैं। जहां तक संभव हो गीतिका को दुरूहता और गरिष्ठ शब्दावली से दूर रखें। प्रस्तुत कृति ‘उम्र जैसे नदी हो गई’ में भी 100 गीतिकाएं संकलित हैं जो हमारे जीवन के विविध रंगो को उकेरती हैं। घटनाओं, सन्दर्भों, संदेशों, कशाघातों और अन्य उल्लेख्य आलम्बों का सहारा लेकर रचनाएँ लिखी गई हैं।

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सम्मान्य मित्रों, अपने दो गीतिका शतक संकलनों ‘दृगों में इक समंदर है’ और ‘मृग कस्तूरी हो जाना’ के बाद गीतिका-सृजन की अपनी संकल्प-यात्रा का यह तीसरा पुष्प ‘उम्र जैसे नदी हो गई’ आपके हाथों में सौपते हुए हर्षित हूँ। समय के साथ साथ आज हिन्दी काव्य की दिशा भी बदली है, नये बिम्ब, नये प्रतीक, नवल दृष्टि और नव -विधा के विविध रूप निरंतर प्रकट हो रहे हैं। महाप्राण निराला से आरम्भ हुई ‘गीतिका’ की स्वतंत्र अभिव्यक्ति आज बहुत आगे बढ़ चुकी है। निराला जी ने गीतिका छंद से इतर अपने प्रगीतों को ‘गीतिका’ शीर्षक देकर इस नव्य काव्य की विधा का शंख फेंक दिया था। बाद में लोकप्रिय कवि गोपालदास नीरज जी ने गज़ल को हिन्दी की स्वतंत्र विधा के रूप में प्रतिष्ठित किया। कवि दुष्यंत कुमार ने गज़ल को पारंपरिक दुरूह बाग्जाल से निकालकर जीवन के विभिन्न पहलुओं से जोड़ा। उनकी रचनाओं में हिन्दी गीतिका के स्वर उभरे हैं, भले ही उन्हें गज़ल कहकर पुकारा गया हो बाद के हिन्दी के अनेक रचनाकारों के मुक्तकों और गीतों में गीतिका सृजन का सरोकार प्रमुख रूप से मुखरित हुआ। आज ‘गीतिका’ हिन्दी की एक स्वतंत्र काव्य-विधा के रूप में उभरी है। यह गीतिका न तो पुराना गीतिका छंद है और न पुराना हरिगीतिका छंद । हां, इन दोनों छंदों पर आधारित गीतिकाएं भी लिखी जा रही हैं, किन्तु ऐसी गीतिका का स्वतंत्र अस्तित्व है। आज शताधिक रचनाकार गीतिकाएं लिख रहे हैं। गीतिका गज़ल नही है, उसके समानांतर एक समरूप विधा है। गीतिका सहज निर्झरणी की तरह भी प्रवहमान है और विविध छंदों पर भी आधारित है. इसके दोनों स्वरुप प्रचलित हैं, गीतिका हिन्दी की एक सम्पूर्ण काव्य-विधा है और यह मात्रिक, वार्णिक, छान्दस, गे एवं लयात्मक है। चार दशक से अधिक समय से गीतिका लिखने का मेरा यह प्रयास आज भी जारी है, मैंने कभी गज़ल नहीं लिखी क्योंकि वर्ष 1972 से ही जब पहली गीतिका लिखी थी, मेरा यह मानना रहा है कि गीतिका और गज़ल में साम्य होते हुए भी दोनों अलग अलग विधाएं हैं। गजल उर्दू व्याकरण पर आधारित है और गीतिका का आधार हिन्दी व्याकरण है। गीतिका के अपने मानदंड हैं-मापनी, मात्रा-भार एवं छन्द पर आधारित अथवा सहज प्रवाही गीतिका, गीतिका में लयात्मकता और गेयता प्रमुख है. गज़ल का एक निश्चित प्रारूप है, जो इससे भिन्न है। यह कतई आवश्यक नहीं कि गीतिका में क्लिष्ट हिन्दी शब्दों का प्रयोग हो । गीतिका एक लोकप्रिय, मधुर और गेयता प्रधान अभिव्यक्ति है। गज़ल की भांति इसमें कठोर अनुशासन नहीं है, गीतिका अपेक्षाकृत लचीली काव्य-विधा है। इसमें बोलचाल के शब्द चाहे वे किसी भी भाषा के क्यों न हों समाहित किये जा सकते हैं। जहां तक संभव हो गीतिका को दुरूहता और गरिष्ठ शब्दावली से दूर रखें। प्रस्तुत कृति ‘उम्र जैसे नदी हो गई’ में भी 100 गीतिकाएं संकलित हैं जो हमारे जीवन के विविध रंगो को उकेरती हैं। घटनाओं, सन्दर्भों, संदेशों, कशाघातों और अन्य उल्लेख्य आलम्बों का सहारा लेकर रचनाएँ लिखी गई हैं।

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