Description
सुकवियत्री वंदना विनम्र से मेरा रूबरू परिचय आज तक नहीं हुआ। न हीं मैं आज से पहले उन्हें जानता था लेकिन एक दिन फेसबुक पर उनकी एक रचना पढ़कर प्रभावित हुए बिना नहीं रह पाया। आजकल सोशल मीडिया के युग में किसी भी व्यक्ति से वाकिफ़ होने के लिए उससे मिलना, परिचय करना बहुत जरूरी नहीं होता। इंटरनेट पर उसके बारे में, उसकी अभिरुचि के बारे में, तथा उसकी कृतियों के बारे में आसानी से जाना जा सकता है। वंदना विनम्र भी उनमें से एक हैं। मेरे इनबॉक्स में आई हुई उनकी एक रचना पढ़कर जब मैंने उन्हें शाबाशी दी तो इन्होंने मुझसे बात करने की अनुमति मांगी। मैंने नंबर दे दिया, अनुकूल समय पर जब उनका फोन आया तो आवाज सुनकर मुझे आश्चर्य हुआ, जैसा इनका उपनाम है वैसा ही इनका स्वभाव। किसी भी व्यक्ति स्वभाव अगर विनम्र है तो समझ लीजिए वह अंदर से अवश्य रचनाधर्मी होगा। वंदना जी ने मुझ से आग्रह किया कि मैं उनकी आगामी प्रकाशित कृति के लिए कुछ लिखूँ, तो मैं उनके इस आग्रह को टाल न सका।
कुछ समय बाद इन्होंने मुझे अनेक रचनाएं प्रेषित कीं, जिन्हें पढ़ने के उपरांत मैंने पाया कि वह तो बहुत गहरी रचनाकार हैं। क्योंकि जो बहुत गहरा होगा और अनुभवी होगा वही सीधी और सरल भाषा का प्रयोग करेगा। अति विद्वान लोग दो शब्दों का ऐसा कठिन जाल बुनते हैं कि भाव पक्ष विलुप्त सा हो जाता है।
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