Description
कृषि प्रधान ग्राम आडेगाँव (खुर्द) की पावन धरा मेरी जन्मभूमि है गाँव की वो मिट्टी जिसकी सुगंध आज भी मेरी साँसो में है बचपन की वो शरारते दोस्तों के साथ मटर गश्ती रोज शाम को घर पर पड़ोसी का उलहाना आना और घर वालों की डाँट से निराश होना आम बात थी। ये डाँट फटकार का सिलसिला रोज का था उन्हीं दिनों निराशमन से लिखे शब्द कब कविता बन गयें पता नहीं चला पड़ोस की दुकान पर एक रूपये में ढेरों चॉकलेट लेना और चॉकलेट लेकर दुकानदार को चिढ़ाकार भाग जाना। ये प्रसंग कुछ समय के लिए हँसी देता था।
स्कूल समय में पढ़ाई पर ध्यान देते हुए राष्ट्रीय पर्वो पर कार्यक्रम में हिस्सा लेना अपने आप में खुशी का अनुभव कराता था देश प्रेम की बातें सुनना बहुत अच्छा लगता था अपनी माँ भारती पर मेरा अगाध स्नेह बचपन से था। धीरे-धीरे घर की व्यस्तताओं में पढ़ाई का क्रम रूकता गया लेकिन हृदय केन्द्र पर माँ भारती का चित्र छपा रहा और लेखन जारी रहा उन्हीं दिनों साहित्य के क्षेत्र में लिप्त रहने पर मेरी मुलाकात गाडरवारा के वरिष्ठ साहित्यकार आदरणीय कुशलेन्द्र भैया से हुई आदरणीय कुशलेन्द्र भैया ने मात्र मेरी एक कविता सुनकर मुझे अखिल भारतीय मंच पर कविता पड़ने का अवसर प्रदान किया।
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