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Sochti hu (सोचती हूँ)

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हिन्दी साहित्य की दुनिया में प्रस्तुत पुस्तक ‘सोचती हूँ…’ के माध्यम से यह मेरा पहला कदम है। यह पुस्तक ही मेरा तथा मेरे दृष्टिकोण का परिचय है, साथ ही इस पुस्तक के साकार होने की अवधि में मेरा परिचय साहित्य जगत के अनेक साथियों से भी हुआ । ऐसा लगा मानो एक सपने को जी रही हूँ। अपनी तलाश में हूँ, अपनों की तलाश में हूँ, यह पुस्तक मेरा अर्न्तमन है।
वर्तमान में मैं राजकीय वरिष्ठ माध्यमिक पाठशाला रतनाड़ी, तहसील कोटखाई, जिला-शिमला, हिमाचल प्रदेश में स्नातकोत्तर शिक्षिका (हिन्दी) के पद पर कार्यरत हूँ। मेरी दुनिया बहुत छोटी है, मेरा परिवार व गिने चुने मित्र ही मेरी दुनिया है। वे सब मेरे जीवन में हैं उन्हीं से मेरी दुनिया सुन्दर और सुरक्षित है।
जहाँ वास्तविक दुनिया को मेरे परिवार व मित्रों ने सुन्दर बनाया है, मेरे लिए प्यार व सुरक्षा का एक घेरा बना रखा है वहीं आभासी दुनिया के मित्रों ने हिन्दी साहित्य के क्षेत्र में अँगुली पकड़कर मुझे आगे बढ़ाया, ना मालूम कब की आभासी से वास्तविक जीवन का अंग बन गये, ये ऐसा ही है जैसे आप किसी सपने को जी रहे हैं वो साकार होता जा रहा है।

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हिन्दी साहित्य की दुनिया में प्रस्तुत पुस्तक ‘सोचती हूँ…’ के माध्यम से यह मेरा पहला कदम है। यह पुस्तक ही मेरा तथा मेरे दृष्टिकोण का परिचय है, साथ ही इस पुस्तक के साकार होने की अवधि में मेरा परिचय साहित्य जगत के अनेक साथियों से भी हुआ । ऐसा लगा मानो एक सपने को जी रही हूँ। अपनी तलाश में हूँ, अपनों की तलाश में हूँ, यह पुस्तक मेरा अर्न्तमन है।
वर्तमान में मैं राजकीय वरिष्ठ माध्यमिक पाठशाला रतनाड़ी, तहसील कोटखाई, जिला-शिमला, हिमाचल प्रदेश में स्नातकोत्तर शिक्षिका (हिन्दी) के पद पर कार्यरत हूँ। मेरी दुनिया बहुत छोटी है, मेरा परिवार व गिने चुने मित्र ही मेरी दुनिया है। वे सब मेरे जीवन में हैं उन्हीं से मेरी दुनिया सुन्दर और सुरक्षित है।
जहाँ वास्तविक दुनिया को मेरे परिवार व मित्रों ने सुन्दर बनाया है, मेरे लिए प्यार व सुरक्षा का एक घेरा बना रखा है वहीं आभासी दुनिया के मित्रों ने हिन्दी साहित्य के क्षेत्र में अँगुली पकड़कर मुझे आगे बढ़ाया, ना मालूम कब की आभासी से वास्तविक जीवन का अंग बन गये, ये ऐसा ही है जैसे आप किसी सपने को जी रहे हैं वो साकार होता जा रहा है।

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