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Looking for coupon codes? See ongoing discountsइस पुस्तक में छायावादी युग के महत्त्वपूर्ण कवि, कहानीकार, नाटककार और उपन्यासकार जयशंकर प्रसाद के तीनों उपन्यास—‘कंकाल’, ‘तितली’ और ‘इरावती’ संकलित किए गए हैं। भारतेन्दु के बाद जिन लोगों ने हिन्दी गद्य को एक परिपक्व रूप दिया उनमें प्रसाद की भूमिका भी अत्यन्त महत्त्वपूर्ण है।
उनकी सांस्कृतिक अभिरुचि, यथार्थ को अपने ढंग से देखने का उनका तरीक़ा और उसे भाषा में अंकित करने का ढंग उन्हें एक अलग जगह देता है। ये उपन्यास भी इसके साक्षी हैं। उपन्यास ‘कंकाल’ और ‘तितली’ में उन्होंने तत्कालीन युग-बोध को एक भिन्न कोण से पकड़ा था। असहाय स्त्रियों के जीवन की चुनौतियों को दिखाने के लिए उन्होंने इन रचनाओं में यथार्थ के बाह्य रूपों को चित्रित करने के साथ-साथ व्यक्तिमन की आन्तरिक परतों को भी उद्घाटित किया। ‘तितली’ को कथा-शिल्प और वस्तु-विन्यास के दृष्टिकोण से प्रसाद का सर्वाधिक परिपक्व उपन्यास माना जाता है।
‘इरावती’ को वे पूरा नहीं कर सके थे। शुंगकालीन ऐतिहासिक विषय और बौद्धकालीन रूढ़ियों-विकृतियों के प्रति विद्रोह की जिस कथा-वस्तु को लेकर उन्होंने यह उपन्यास आरम्भ किया था, वह निश्चय ही एक बड़ी औपन्यासिक कृति के रूप में फलीभूत होता। यहाँ ‘इरावती’ के उपलब्ध स्वरूप को यथावत् संकलित किया गया है ताकि पाठक प्रसाद की उपन्यास-काल के मर्म को जान सकें।
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Weight | 604 g |
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Dimensions | 23 × 14 × 3 cm |
Book Author | |
Publisher | |
Language | |
Pages | 520 |
Binding | |
Condition |
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