Description
ये कविताएँ, स्त्री मन की संवेदनाएं दर्शाने के साथ-साथ स्त्रियों के प्रति कृतघ्नता प्रगट करती है। छंद रहित, छंदमुक्त सीधी सरल शब्दों में प्रतीकों का कहीं-कहीं प्रयोग करते हुए अपने मनोभावों को प्रस्तुत किया है। मेरी, तेरी उसकी ही नहीं स्त्रीतत्व के प्रतिनिधित्व को ये कविताएँ सामने रखने का प्रयास कर रही है। समाज में उसके हिस्से में सुख-दुख दोनों आने पर वो प्रतिबिम्ब स्वतः का देखती है। तब मूक संवाद अपने कागज से साधती है।
पुरुष सत्तात्मक समाज व्यवस्था में सतत् मान हानि और अस्मिता पर होते अविरल घाव जब असहय होने लगते है तब उसका मन लेखनी बनकर विद्रोही राह पकड़ता है।
तभी उसे आत्मप्रतिष्ठा से जीने के लिये संघर्षरत बनना पड़ता है। इसी प्रथम प्रयास में लिखी ये कुछ रचनाएँ मूक स्त्रीमन का प्रस्तुतीकरण है।
इसमें भावनाओं की गूढ़ता स्फदिंत होती है।
Reviews
There are no reviews yet.