Sale!

Meri Aatmakatha by Kishore Sahu

Original price was: ₹499.00.Current price is: ₹449.00. incl. GST

Looking for coupon codes? See ongoing discounts

बहरहाल, फ़िल्मी दुनिया के साथ मेरा दूसरा सम्पर्क किशोर साहू के माध्यम से हुआ। उन दिनों ‘हंस’ शुरू नहीं हुआ था और हम अक्षर प्रकाशन से पुस्तकें छाप रहे थे। किशोर की आत्मकथा मुझे अच्छी लगी और मैंने उसे छापने का मन भी बना लिया। किशोर की फ़िल्मों का मैं पुराना भक्त था। ‘राजा’, ‘कुँवारा बाप’, ‘सावन आया रे’ इत्यादि फ़िल्में मैं कई-कई बार देख चुका था। सबसे अन्त में किशोर साहू को मैंने ‘गाइड’ में देखा। रमोला किशोर की प्रिय हीरोइन थी। नन्ही-मुन्नी-सी चंचल, चुलबुली और समर्पित लड़की। कलकत्ते में मुझे पता लगा कि इक़बालपुर रोड के जिस फ़्लैट में मैं रहता हूँ उसके चार-पाँच मकान बाद ही रमोला भी रहती है। एक रोज़ उस घर का दरवाज़ा खटखटाने पर निकली एक काली ठिंगनी बुढ़िया से जब मैंने रमोला का नाम लिया तो उसने धड़ाक से दरवाज़ा बन्द कर लिया। यह मेरे लिए भयंकर मोहभंग था। क्या इसी रमोला की तस्वीर मैं अपनी डायरी में लिए फिरता था और कविताएँ लिखता था।

किशोर साहू से मिलने से वर्षों पहले उनके पिता कन्हैयालाल साहू से मेरा लम्बा पत्र-व्यवहार रहा है। वे नागपुर के पास रहते थे और सिर्फ़ किताबें पढ़ते थे। उनके हिसाब से हिन्दी में एकमात्र आधुनिक लेखक किशोर साहू थे। मैंने भी किशोर साहू के दो-तीन कहानी-संग्रह पढ़े थे और वे सचमुच मुझे बेहद बोल्ड और आधुनिक कहानीकार लगे थे। दुर्भाग्य से हिन्दी कहानी में उनका ज़िक्र नहीं होता है, वरना वे ऐसे उपेक्षणीय भी नहीं थे। आत्मकथा प्रकाशन के सिलसिले में किशोर साहू ने मुझे बम्बई बुलाया। स्टेशन पर मुझे लेने आए थे किशोर के पिता कन्हैयालाल साहू। मैं ठहरा कमलेश्वर के यहाँ था। शाम को किशोर के यहाँ खाने पर उस परिवार से मेरी भेंट हुई। अगले दिन किशोर मुझे अपने वर्सोवा वाले फ़्लैट पर ले गए, जहाँ वे अपना पुराना बँगला छोड़कर शिफ़्ट कर रहे थे। यहाँ बीयर पीते हुए हमने दिन-भर आत्मकथा के प्रकाशन पर बात की। वे इस आत्मकथा में दुनिया-भर की तस्वीरें ख़ूबसूरत ढंग से छपाना चाहते थे। लागत देखते हुए हम लोगों की स्थिति उस ढंग से छापने की नहीं थी। उन्होंने शायद कुछ हिस्सा बँटाने की भी पेशकश की। मगर वह राशि इतनी कम थी कि आत्मकथा को अभिनन्दन-ग्रन्थ की तरह छाप सकना हम लोगों की सामर्थ्य के बाहर की बात थी। आख़िर बात नहीं बनी और मुझे दिल्ली वापस आना पड़ा। वैसे किशोर में एक ख़ास क़िस्म का आभिजात्य था और वह नपे-तुले ढंग से ही बातचीत या व्यवहार करते थे।

—राजेन्द्र यादव

10 in stock

Purchase this product now and earn 4 Reward Points!
Buy Now
SKU: 9788126730230 Category: Tag:
Report Abuse

Ready to ship in 1-2 business days


 

Shipping Policy

Our systems are being upgraded. Orders between 3 Mar and 7 Mar 2025 will be shipped from 8 Mar 2025 onwards.

Additional information

Weight 640 g
Dimensions 22 × 15 × 3 cm
Book Author

Publisher

Language

Pages

416

Binding

Condition

Reviews

There are no reviews yet.

Only logged in customers who have purchased this product may leave a review.

Loading...

Seller Information

Product Enquiry