Description
चौराहे पर पहुंचते ही गेंदादत्त की दृष्टि दूसरे गाँव की कच्ची पगडंडी पर पड़ी, जिस पर विद्यालयी परिधान पहने एक लड़की चली आ रही थी, उसे देखकर गेंदादत्त सहसा ठिठक गया। वह दूर से आती हुई लड़की को टक-टकी लगाए देखने लगा, लड़की व गेंदादत्त के मध्य की दूरी निरंतर घट रही थी, और अंततः उन दोनों के मध्य अब चार गज की दूरी शेष थी। गेंदादत्त तथा लड़की एक दूसरे के लिए अपरिचित थे, इससे पूर्व उन दोनोंं का आमना-सामना कभी नहीं हुआ था, लड़की पीठ पर बस्ता लगाए हुई थी, वह निःशब्दता से दृष्टि झुकाए गेंदादत्त के समीप से निकलते हुए, विद्यालय पथ पर अग्रसर हो गयी! गेंदादत्त भी कुछ दूरी बनाकर उसके पीछे चलने लगा।
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