Sale!

kash hum vriksh hote (काश हम वृक्ष होते)

Original price was: ₹200.00.Current price is: ₹180.00. incl. GST

Looking for coupon codes? See ongoing discounts

काव्य के सभी तत्वों का समावेश वेदों में है और वेदों को देव का अमर काव्य कहा गया है। परमात्मा के लिए वेदों में अनेक जगह कवि शब्द का प्रयोग किया गया है। “कविर्मनीषी परिभूः स्वयंभूः” इस प्रकार काव्य और कवि दोनों शाश्वत हैं। संभवतः प्रथम काव्य मय ध्वनि ॐ रही होगी, जो पूरी सृष्टि की उत्पत्ति का मूल है। हम कह सकते हैं कि ‘वैदिक संस्कृत’ और ‘हिन्दी’ में तो जमीन-आसमान का अन्तर है। लेकिन हिंदी भाषा का स्रोत भी वैदिक संस्कृत ही है। बस उनके स्वरूप व लिखने का ढंग परिवर्तित होता रहा, कभी ‘वैदिक’, कभी ‘संस्कृत’, कभी ‘प्राकृत’, कभी ‘अपभ्रंश’ और अब – हिन्दी । आधुनिक हिंदी साहित्य का विकास आठवीं शताब्दी से प्रारम्भ होकर आधुनिक काल तक अपने कई पड़ावों जैसे आदि काल, भक्ति काल, रीतिकाल आदि से गुजरते व परिमार्जित होते हुए अपने वर्तमान स्वरुप में दिखाई पड़ रहा है। परिवर्तन सृष्टि का नियम है और नित नए नए प्रयोगों के साथ भाषा एवं साहित्य अपने पथ पर अग्रसर व विकसित होती रहती है।
आचार्य मम्मट ने अपने ग्रन्थ काव्य प्रकाश में कवि की सृष्टि व सामर्थ्य को ब्रह्मा से भी अधिक महत्व प्रदान किया है। कवि की रचना धर्मिता किसी नियम अथवा कर्म फल के अधीन नहीं है जब कि ब्रह्मा सृष्टि निर्माण में नियमों, नियति, मनुष्य के कर्म फल आदि से बंधा होता है। कवि की रचना सदैव आनंद देने वाली होती है भले ही वह करुण रस से ओतप्रोत क्यों न हो, जब की ब्रह्मा की सृष्टि में सुख व दुःख दोनों का समावेश होता है। इसी प्रकार जहाँ ब्रह्मा द्वारा मधुर, अम्ल, लवण, कटु, कषाय व तिक्त छह रसों की रचना  की गयी है, वहीं कवि की रचना नौ रसों की  मिनी होती है और सभी रस आनंदमय हैं।

10 in stock

Purchase this product now and earn 1 Reward Point!
Buy Now
SKU: AP-5632 Category: Tag:
Report Abuse

Description

दो शब्द हैं एक शब्द है रूप और दूसरा है स्वरूप । देखने में दोनों शब्दों का अर्थ एक-सा ही लगता है, लेकिन वास्तविकता यह है कि रूप हमारी आँखों का विषय है, किसी और का भी हो सकता है। लेकिन जब हम स्वरूप शब्द का प्रयोग करते हैं तो ऐसा आभासित होता है कि यह स्वरूप है यानी हमारा जो अपना रूप है या जो कुछ भी है, उसका स्वरूप है। इस अर्थ में, मैं यह मानता हूँ कि कविता कवि के भावों का, विचारों का, व्यक्तित्व का स्वरूप है। जैसा वो सोचता है, वो जिन भावनाओं की तरंगों में बहता है और जो उसका मूल व्यक्तित्व होता है, उसकी छाप उसकी कविता पर होती है। इसलिए मैं कविता के सन्दर्भ में स्वरूप शब्द का इस्तेमाल कर रहा हूँ, जिसका आशय यही है कि वह कवि के व्यक्तित्व का स्वरूप है। इसलिए जब हम किसी कवि की कोई कविता पढ़ते हैं या उसका पूरा रचना संसार देखते हैं, तो उसको देखने के बाद जो निष्कर्ष निकालते हैं, उसके माध्यम से उस कवि का स्वरूप ही हमारे सामने प्रकट होता है। दूसरी बात जो मेरे मन में इन दो शब्दों को लेकर आती है कि शब्दों के माध्यम से कविता कोई भी रूप धारण कर ले लेकिन वह अपने स्व को नहीं छोड़ती है। उदाहरण के लिए सोने से कोई भी आभूषण जैसे अंगूठी, कुंडल, गले की माला आदि कुछ भी बनाया जाय लेकिन उसका मूल स्वरुप सोना ही होता है। इसी प्रकार कवि की जो भावना होती हैं, विचार होते हैं, उनको वह शब्दों में अभिव्यक्ति करता है। अर्थात जो उसका मूल स्वरूप स्वर्ण है, वह नए नए आकार लेकर आता है। वह गीत के रूप में आ सकता है, ग़ज़ल के रूप में आ सकता है, दोहों, हाइकु या साहित्य की अन्य विधाओं के रूप में आ सकता है, लेकिन वह होता सोना ही है यानी कवि के भावों व विचारों का मूल तत्व ही ।

Additional information

Language

Publisher

Condition

Reviews

There are no reviews yet.

Only logged in customers who have purchased this product may leave a review.

Loading...

Seller Information

Product Enquiry