Description
रात की कालिमा अपना मुख छुपाकर चाँद को निहार रही थी और गाड़ी अपनी पूरी रफ्तार से रात की नीरवता भँग करती आगे बढ़ रही थी। सहयात्री अपने-अपने बिस्तर पर दुबके सोने का प्रयास कर रहे थे। उसने चारोंं ओर नजर दौड़ाई, फोन पर माँ को शुभरात्रि कहा और वह भी सोने का उपक्रम करने लगी। अभी-अभी उसने शहर आकर कॉलेज ज्वाइन किया था और पहली छुट्टी में घर जा रही थी। बहुत खुश थी
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