Description
कहानियाँ उफनते विचारों-उदगारों की सुनामी हैं। पंद्रह अगस्त और छब्बीस जनवरी के ठीक पहले यह सुनामी हृदय सागर की अथाह गहराई से उठती है। तूफानी लहरों से उद्वेलित मनोभाव किनारा तोड़ देते हैं। सबकुछ तहस नहस कर चली जाती हैं ये लहरें। मानस में भूकंप उठता है। दरारे नजर आती हैं हर दरार के दरीचे में अपना तिरंगा प्रष्नचिन्ह सा दिखाई देता है। बूढ़ा जीतन, महादेव बाबू , बरगद का पेड़ सबके उदर तिंरगे के सम्मान की भूख से कुलबुला रहे हैं। कैसे सूख गई देषभक्ति? राष्ट्रप्रेम का अकाल कैसे छा गया? भारत भूमि पर क्रान्तिकारियों ने वन्दे मातरम की जो लहलहाती फसल उगाई थी कैसे सूख गई? ये प्रश्न हर राष्ट्रीय पर्व पर उभरते हैं और अनुत्तरित रह जाते हैं। तिरंगे को जवाब देने का साहस आज किसमें हैं? हर कहानी एक प्रश्न ही तो है। तिरंगे की शान में तिरंगे को समर्पित शब्दों की श्रद्धांजलि देने का प्रयास हैं ये कथाएँ। जय हिंद की दो कहानियाँ झारखण्ड की अपनी कथा हैं।
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