Description
डा० प्रतिभा माही बहुमुखी प्रतिभा की धनी है, साहित्य के क्षेत्र में एक प्रसिद्ध ग़ज़लकार के रूप मे एक मुकाम हासिल कर चुकी है। उनकी पहली पुस्तक ग़ज़ल संग्रह “इश्क मेरा सूफियाना” उनके जीवन का चित्रण करती हुई प्रेम श्रृंगार, वियोग व सूफियाना इत्यादि रंगों से सराबोर है। माही की दूसरी पुस्तक “चन्दा मामा आओ ना” बालपन की मासूम झलकियों को समैटे हुए बाल गीत व भक्ति गीतो से मनमोहक चित्रों सहित सज्जी हुई है जो छोटे-2 नन्हे-2 मासूमों को अपनी ओर आकर्षित कर खेल ही खेल मे अच्छे संस्कारों की सीख देती है अक्सर देखने में आया है कि शहरीकरण, पलायन व संयुक्त परिवारों के विघटन के वर्तमान दौर में बच्चे दादा-दादी, नाना-नानी व माता-पिता से दूर होते जा रहे हैं। कई बच्चों को तो बचपन में ही घर से दूर स्कूल के हॉस्टिल में भेज दिया जाता रहा है। महंगाई के दौर में माता-पिता दोनों नौकरी करने के लिए मज़बूर हैं। घर पर बच्चों की देखभाल आया ही करती है। ऐसे में बच्चे अपने दादा-दादी, नाना-नानी व माता-पिता से मिलने वाले प्राकृतिक प्यार से वंचित रह जाते हैं। इस कारण अधिकतर बच्चे असंवेदनशील होते जा रहे हैं, जिसकी परिणीति हम सब आज समाज में देख रहे हैं। एक दौर था जब गांव-मुहल्ले के सारे बच्चे स्कूल से आकर समूह में खेलते थे। इससे उनके मन में टीम भावना जाग्रत होती थी। नेतृत्व करना भी वे सीखते थे। समूह में वे अच्छी बातें भी सीखेते थे तो कुछ दोस्तों से गाली-गलौच भी सीखते थे। बच्चा गाली गलौच न सीखे, इसके लिए आज अभिभावकों ने बच्चे के लिए घर के अंदर ही कंप्यूटर, वीडियो गेम व टेलीविजन व मोबाइल बच्चे के लिए रख दिया है। इस कारण आज का बच्चा प्रकृति से दूर होता जा रहा है। मोबाइल या कंप्यूटर के गेम में मार-धाड़ वाले खेलों से कहीं न कहीं वह हिंसक प्रवृत्ति की ओर बढ़ रहा है। इंटरनैट ने उसे विशाल दुनिया से तो जोड़ दिया है, परंतु वह अपने घर के लोगों से ही दूर होता जा रहा है। उसकी दोस्ती टेलीविजन, कंप्यूटर या मोबाइल से हो गई हैं। स्कूल के भारी बस्ते, होमवर्क व ट्यूशन संस्कृति ने बच्चे का बचपन छीन लिया है। उसके पास खेलने का तक समय नहीं है। अभिभावक उसे बाल पत्रिकाएं या दूसरी बालोपयोगी पुस्तकें इसलिए नहीं देना चाहते हैं कि उसका ध्यान पढ़ाई से भटक जाएगा। आज के अभिभावक बच्चों को पढ़ा-लिखाकर इंजीनियर व डॉक्टर के तौर पर पैसा कमाने की मशीन तो बनाना चाहते हैं, परंतु बच्चा एक अच्छा इंसान बने इस पर ध्यान नहीं दिया जा रहा है। इसके लिए बचपन से ही बच्चों में अच्छे संस्कार जाग्रत करने होगें।
Reviews
There are no reviews yet.