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HANUMAT HUNKAR (हनुमत हुनकर)

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अंजनीनन्दन हनुमान के जन्म की कथाएँ कल्पभेद के अनुसार भिन्न रूपों में मिलती है। फलतः वे पवनपुत्र, शंकर-सुअन भी माने जाते हैं। अस्तु; जो भी हो, उनका व्यक्तित्व असाधारण विस्मयकारी गुणों का पुंजीभूत रूप है। वे नैष्ठिक ब्रह्मचारी, जितेन्द्रिय, शास्त्र पारंगत, विलक्षण, बुद्धि-विवेक, सूझ-बूझ, तथा अद्भुत धैर्य, शौर्य, साहस एवं पराक्रम के उच्चादर्श हैं। उनका जग वन्दित विराट- व्यक्तित्व सर्वविदित है जिसका गौरवगान कर अनेकानेक मनीषियों, कवियों ने अपनी लेखनी को पुनीत किया है। ‘तदपि कहे बिनु रहा न कोई’ का सम्बल लेकर, पिष्ट-पेषण की चिन्ता किये बिना, इस लघु-खण्डकाव्य में सीता-खोज प्रसंग के माध्यम से उन्हीं के महान व्यक्तित्व को उजागर किया गया है।
आज के उपभोक्तावादी युग में हम ऐसे अर्थ और काम के उपासक होकर रह गये हैं जिस पर धर्म का अंकुश नहीं रह गया है। इसी कारण हमारी एषणाएँ नैतिक-अनैतिक का विचार किये बिना सर्वथा स्वच्छन्द हो गयी हैं। यह स्थिति हमारे समाज, देश और राष्ट्र को पतन की ओर उन्मुख करती दिखायी देती है। वर्तमान परिवेश में हनुमान का महच्चरित, उनका महत्वादर्श हमारे देशवासियों और विशेषतः युवाशक्ति को ऐसी प्रेरक ऊर्जा देने में पूर्ण समर्थ है जिससे हमारे राष्ट्र की अस्मिता की श्री-वृद्धि संभव है।
इस कृति की ‘शुभाशंसा’ के लिए मैं श्रद्धेय प्रो. सूर्यप्रसाद दीक्षित, पूर्व आचार्य-अध्यक्ष, हिन्दी विभाग, लखनऊ वि. वि. तथा ‘पूर्ववाक्’ के लिए प्रो. हरिशंकर मिश्र, पूर्व आचार्य, हिन्दी विभाग, लखनऊ वि. वि. एवं मंतव्य हेतु प्रो. नरेन्द्रदेव शर्मा, पूर्व अध्यक्ष, संस्कृत विभाग, सी.जी.एन. पी.जी. कालेज, गोलागोकर्णनाथ, खीरी सहित वरिष्ठ छन्दकार श्री सरस कपूर, लखनऊ का हृदय से आभारी हूँ। इसके अतिरिक्त श्री निरंजन स्वरूप नगाइच, आचार्य देवेन्द्र देव, श्री रामेश्वरनाथ मिश्र ‘अनुरोध’, आचार्य रामदेव लाल विभोर, ओजकवि श्री ओमप्रकाश मिश्र ‘प्रकाश’, ‘मुक्तक लोक’ के संस्थापक प्रो. विश्वम्भर शुक्ल, श्री राकेश मिश्र, वरिष्ठ छन्दकार श्री अशोक पाण्डेय ‘अशोक’, डॉ. वेदप्रकाश आर्य, डॉ. मृदुल शर्मा, डॉ. शिवभजन कमलेश, श्री रमाशंकर सिंह, श्री भोलानाथ अधीर, डॉ. अरूण त्रिवेदी, श्री अरुणेश मिश्र, डॉ. भारतेन्दु मिश्र, डॉ. दिनेशचन्द्र अवस्थी, डॉ. रामबहादुर मिश्र, श्री विनय बाजपेयी, श्री ओमजी मिश्र, डॉ. रमेशमंगल बाजपेयी, श्री भूपेन्द्र दीक्षित, डॉ. सुनील सारस्वत, श्री सुशील कुमार वर्मा, श्री अशोक शुक्ल ‘अनजान’, डॉ. प्रीति मिश्रा आदि उन सभी शुभेच्छुओं का कृतज्ञ हूँ, जो सतत मनोबल बढ़ाते रहते है।
अंत में अनुराधा प्रकाशन, दिल्ली को भी धन्यवाद देना कर्तव्य समझाता हूँ, जिसके द्वारा कृति यथासमय प्रकाश में आ सकी।

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अंजनीनन्दन हनुमान के जन्म की कथाएँ कल्पभेद के अनुसार भिन्न रूपों में मिलती है। फलतः वे पवनपुत्र, शंकर-सुअन भी माने जाते हैं। अस्तु; जो भी हो, उनका व्यक्तित्व असाधारण विस्मयकारी गुणों का पुंजीभूत रूप है। वे नैष्ठिक ब्रह्मचारी, जितेन्द्रिय, शास्त्र पारंगत, विलक्षण, बुद्धि-विवेक, सूझ-बूझ, तथा अद्भुत धैर्य, शौर्य, साहस एवं पराक्रम के उच्चादर्श हैं। उनका जग वन्दित विराट- व्यक्तित्व सर्वविदित है जिसका गौरवगान कर अनेकानेक मनीषियों, कवियों ने अपनी लेखनी को पुनीत किया है। ‘तदपि कहे बिनु रहा न कोई’ का सम्बल लेकर, पिष्ट-पेषण की चिन्ता किये बिना, इस लघु-खण्डकाव्य में सीता-खोज प्रसंग के माध्यम से उन्हीं के महान व्यक्तित्व को उजागर किया गया है।
आज के उपभोक्तावादी युग में हम ऐसे अर्थ और काम के उपासक होकर रह गये हैं जिस पर धर्म का अंकुश नहीं रह गया है। इसी कारण हमारी एषणाएँ नैतिक-अनैतिक का विचार किये बिना सर्वथा स्वच्छन्द हो गयी हैं। यह स्थिति हमारे समाज, देश और राष्ट्र को पतन की ओर उन्मुख करती दिखायी देती है। वर्तमान परिवेश में हनुमान का महच्चरित, उनका महत्वादर्श हमारे देशवासियों और विशेषतः युवाशक्ति को ऐसी प्रेरक ऊर्जा देने में पूर्ण समर्थ है जिससे हमारे राष्ट्र की अस्मिता की श्री-वृद्धि संभव है।
इस कृति की ‘शुभाशंसा’ के लिए मैं श्रद्धेय प्रो. सूर्यप्रसाद दीक्षित, पूर्व आचार्य-अध्यक्ष, हिन्दी विभाग, लखनऊ वि. वि. तथा ‘पूर्ववाक्’ के लिए प्रो. हरिशंकर मिश्र, पूर्व आचार्य, हिन्दी विभाग, लखनऊ वि. वि. एवं मंतव्य हेतु प्रो. नरेन्द्रदेव शर्मा, पूर्व अध्यक्ष, संस्कृत विभाग, सी.जी.एन. पी.जी. कालेज, गोलागोकर्णनाथ, खीरी सहित वरिष्ठ छन्दकार श्री सरस कपूर, लखनऊ का हृदय से आभारी हूँ। इसके अतिरिक्त श्री निरंजन स्वरूप नगाइच, आचार्य देवेन्द्र देव, श्री रामेश्वरनाथ मिश्र ‘अनुरोध’, आचार्य रामदेव लाल विभोर, ओजकवि श्री ओमप्रकाश मिश्र ‘प्रकाश’, ‘मुक्तक लोक’ के संस्थापक प्रो. विश्वम्भर शुक्ल, श्री राकेश मिश्र, वरिष्ठ छन्दकार श्री अशोक पाण्डेय ‘अशोक’, डॉ. वेदप्रकाश आर्य, डॉ. मृदुल शर्मा, डॉ. शिवभजन कमलेश, श्री रमाशंकर सिंह, श्री भोलानाथ अधीर, डॉ. अरूण त्रिवेदी, श्री अरुणेश मिश्र, डॉ. भारतेन्दु मिश्र, डॉ. दिनेशचन्द्र अवस्थी, डॉ. रामबहादुर मिश्र, श्री विनय बाजपेयी, श्री ओमजी मिश्र, डॉ. रमेशमंगल बाजपेयी, श्री भूपेन्द्र दीक्षित, डॉ. सुनील सारस्वत, श्री सुशील कुमार वर्मा, श्री अशोक शुक्ल ‘अनजान’, डॉ. प्रीति मिश्रा आदि उन सभी शुभेच्छुओं का कृतज्ञ हूँ, जो सतत मनोबल बढ़ाते रहते है।
अंत में अनुराधा प्रकाशन, दिल्ली को भी धन्यवाद देना कर्तव्य समझाता हूँ, जिसके द्वारा कृति यथासमय प्रकाश में आ सकी।

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