Description
अनेक बार ऐसा देखने में आया है कि जो हमारे पास है या होता है तब उसकी हम कीमत नहीं समझते अथवा उसका महत्त्व का अनुभव नहीं कर पाते। लेकिन जब उससे बिछड़ते हैं तब उसके वास्तविक महत्त्व को समझते हैं किन्तु अब क्या हो सकता है।
याद करें 60-70-80-90 के दशक के पारिवारिक माहौल का दृश्य जब सब मिलजुल कर एक साथ रहते थे। साथ रहना खाना-पीना, मिलजुल कर साथ में घंटों गपशप करना और ठहाके लगाकर हँसना ।
हँसने से मन प्रसन्न तो होता ही है साथ ही ठहाके लगाकर हँसने से एक तरह का योगाभ्यास / व्यायाम भी हो जाता है। आज जब हम मिलजुल कर रहने के बजाय अपने में सिमट कर रह गए हैं तब हँसी के लिए ब बहाने ढूँढने पड़ रहे हैं। पार्कों में ठहाके लगाना बुजुर्गों के व्यायाम का अंग बन गया है। टेलीविजन चैनल्स पर हँसी पर केन्द्रित विशेष प्रोग्राम आ रहे हैं।
मित्रो ! साहित्य-अध्यात्म एवं जीवन मूल्यों को समर्पित अनुराधा प्रकाशन की टीम राष्ट्र भाषा के प्रचार-प्रसार हेतु मासिक पत्रिका एवं पाक्षिक समाचार पत्र का सफलतापूर्वक प्रकाशन करती आ रही है। साथ ही वर्ष 2015 से हमने साझा संकलनों की श्रृंखला भी प्रारंभ की जिसमें देश विदेश के साहित्यकारों ने जुड़कर उसकी सफलता में भूमिका निभाई।
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