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Geet Huye Sindoori (GEET SANKALAN) गीत हुई सिन्दूरी (गीत संकलन)

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गीत हुई सिन्दूरी (गीत संकलन)

स्वर, पद और ताल से युक्त जो गान होता है वह गीत कहलाता है. गीत की अनेक शैलियाँ स्थापित हैं, जैसे ध्रुपद, धमार, ठुमरी, खयाल आदि. ध्रुपद, चौताल, शूलफाख्ता आदि ताल में गाया जाता है, ठुमरी, दीपचंदी ताल में और खयाल, तीनताल, एक ताल आदि में गाये जाते हैं. आधुनिक काल में भी गीतों में अनेक शैलियों के प्रयोग होते रहे हैं और हो रहे हैं, जिनका सर्वाधिक चर्चित माध्यम हैं फिल्मी गीत. फिल्मी गीतों के माध्यम से समय-समय पर अनेक प्रख्यात कवियों, गीतकारों ने अपने सृजन को धार दी. भरत व्यास के गीत ‘तुम गगन के चंद्रमा हो, मैं धरा की धूल हूँ’, पं. नरेंद्र शर्मा के गीत ‘सत्यम्-शिवम्- सुंदरम्’, बाल कवि बैरागी का गीत ‘तू चंदा, मैं चाँदनी…’, नीरज का ‘आदमी हूँ आदमी से प्यार करता हूँ’, योगेश का ‘रजनीगंधा फूल तुम्हारे’ गुलशन बावरा का ‘मेरे देश की धरती सोना उगले’, शैलेंद्र का ‘पिया तोसे नैना लागे रे..’ हसरत जयपुरी का ‘बहारो फूल बरसाओ, आनंद बख्शी का ‘बड़ी मस्तानी है मेरी महबूबा’ आदि सैंकड़ों प्रख्यात गीतों को कौन नहीं गुनगुनाता. इनसे हम गीतों की कथ्य व शैली को अच्छी तरह समझ सकते हैं.
नौवीं व दसवीं सदी से चली आ रही गीत परम्परा ने काल परिस्थितियों के अनुरुप अपना परिवेश बदला. आरंभ में छंद शास्त्र से पल्लवित गीत की आदि परम्परा, भक्तिकाल में ध्रुपद धमार के रूप में लंबे समय तक बहुत फूली-फली, जिसमें रसखान, हरिदास, अष्टछाप कवियों की स्वर रचनायें भक्तिमार्ग में आज भी सुनने को मिलती हैं. बाद में शृंगार रस, वीर रस, करुण रस की गेय रचनाओं का सृजन हुआ. वीर रस के प्रख्यात गीतों को हमारे राष्ट्रीय दिवसों पर गली-गली में सुना जा सकता है. आज भी गीत और गान के रूप में रचनाओं का सृजन हो रहा है. इतना कहना सार्थक होगा कि बीते युग की धरोहर हैं गीत.

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स्वर, पद और ताल से युक्त जो गान होता है वह गीत कहलाता है. गीत की अनेक शैलियाँ स्थापित हैं, जैसे ध्रुपद, धमार, ठुमरी, खयाल आदि. ध्रुपद, चौताल, शूलफाख्ता आदि ताल में गाया जाता है, ठुमरी, दीपचंदी ताल में और खयाल, तीनताल, एक ताल आदि में गाये जाते हैं. आधुनिक काल में भी गीतों में अनेक शैलियों के प्रयोग होते रहे हैं और हो रहे हैं, जिनका सर्वाधिक चर्चित माध्यम हैं फिल्मी गीत. फिल्मी गीतों के माध्यम से समय-समय पर अनेक प्रख्यात कवियों, गीतकारों ने अपने सृजन को धार दी. भरत व्यास के गीत ‘तुम गगन के चंद्रमा हो, मैं धरा की धूल हूँ’, पं. नरेंद्र शर्मा के गीत ‘सत्यम्-शिवम्- सुंदरम्’, बाल कवि बैरागी का गीत ‘तू चंदा, मैं चाँदनी…’, नीरज का ‘आदमी हूँ आदमी से प्यार करता हूँ’, योगेश का ‘रजनीगंधा फूल तुम्हारे’ गुलशन बावरा का ‘मेरे देश की धरती सोना उगले’, शैलेंद्र का ‘पिया तोसे नैना लागे रे..’ हसरत जयपुरी का ‘बहारो फूल बरसाओ, आनंद बख्शी का ‘बड़ी मस्तानी है मेरी महबूबा’ आदि सैंकड़ों प्रख्यात गीतों को कौन नहीं गुनगुनाता. इनसे हम गीतों की कथ्य व शैली को अच्छी तरह समझ सकते हैं.
नौवीं व दसवीं सदी से चली आ रही गीत परम्परा ने काल परिस्थितियों के अनुरुप अपना परिवेश बदला. आरंभ में छंद शास्त्र से पल्लवित गीत की आदि परम्परा, भक्तिकाल में ध्रुपद धमार के रूप में लंबे समय तक बहुत फूली-फली, जिसमें रसखान, हरिदास, अष्टछाप कवियों की स्वर रचनायें भक्तिमार्ग में आज भी सुनने को मिलती हैं. बाद में शृंगार रस, वीर रस, करुण रस की गेय रचनाओं का सृजन हुआ. वीर रस के प्रख्यात गीतों को हमारे राष्ट्रीय दिवसों पर गली-गली में सुना जा सकता है. आज भी गीत और गान के रूप में रचनाओं का सृजन हो रहा है. इतना कहना सार्थक होगा कि बीते युग की धरोहर हैं गीत.

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