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Dara Shukoh : Sangam Sanskriti Ka Sadhak by Manager Pandey

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दारा शुकोह भारत के इतिहास का एक विशिष्ट पात्र है। यह मुग़ल शहज़ादा अपने समय में जितना प्रासंगिक था, उससे कहीं अधिक प्रासंगिकता उसकी हमारे समय में है। इसकी अहम वजह है दारा की विचार-दृष्टि और उसके अनुरूप किये गये उसके कार्य। वह भारतीय समाज में संगम-संस्कृति को विकसित करना चाहता था। संगम-संस्कृति से उसका आशय इस्लाम और हिन्दू धर्म-दर्शनों की आपसी एकता से था। अपने विचारों को ज़ाहिर करने के लिए उसने दो किताबें लिखीं, बावन उपनिषदों और भगवद्‌गीता का फ़ारसी में अनुवाद किया, इस्लाम और हिन्दू धर्म-दर्शनों के तुलनात्मक अध्ययन की शुरुआत की तथा सूफ़ी साधना और साधकों से जन-सामान्य को परिचित कराने के लिए पाँच और किताबें लिखीं। वस्तुतः वह ख़ुद एक सूफ़ी साधक और हिन्दी, फ़ारसी का शायर था और उसकी शायरी में भी तौहीद की मौजूदगी है।

सत्ता-संघर्ष के ब्योरों से भरे मध्यकालीन इतिहास में दारा शुकोह अपवाद ही था जिसके लिए सत्ता से अधिक ज़रूरी अध्ययन-मनन करना और भारत में संगम-संस्कृति की जड़ें मज़बूत करना था। धार्मिक-आध्यात्मिक उदारता से भरे अपने विचारों की क़ीमत उसे जान देकर चुकानी पड़ी।

प्रख्यात आलोचक मैनेजर पाण्डेय की यह पुस्तक न सिर्फ़ वर्तमान दौर में दारा शुकोह की प्रासंगिकता को नये सिरे से रेखांकित करती है, बल्कि उस संगम-संस्कृति की ज़रूरत पर भी ज़ोर देती है जिसका आकांक्षी वह था। इसमें दारा के कठिन जीवन-संघर्ष और असाधारण सृजन-साधना को सारगर्भित रूप में प्रस्तुत किया गया है। 

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Weight 165 g
Dimensions 22 × 14 × 1 cm
Book Author

Publisher

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Pages

192

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