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dahej (दहेज़)

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मनुष्य जिस समाज में रहता है, उस समाज से उस मनुष्य का गहरा संबंध होता है। समाज में यदि कोई भी बुराई फैलती है तो उस बुराई से प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष किसी ना किसी रूप से वो मनुष्य भी प्रभावित होता है। मानसिक रूप से सोचकर ही क्यों न हो, होना भी चाहिए, क्योंकि समाज में यदि कोई बुराई फैलती है तो आराम-आराम से ही सही पर वो बुराई पूरे समाज को अपने गिरफ्त में ले लेती है जिसका दुष्प्रभाव समूचे राष्ट्र पर पड़ने लगता है। चाहे वो राष्ट्र की बदनामी के रूप में हो या आर्थिक एवं नैतिक पतन के रूप में।
इस पुस्तक में दहेज प्रथा रूपी सामाजिक बुराई पर संक्षिप्त प्रकाश डाला गया है, जो कुप्रथा का रूप ले चुकी है, जिससे भारतीय समाज मुक्त नहीं हो पा रहा है। यह प्रथा आजादी के सत्तर साल बाद भी आर्थिक गुलामी के रूप में उन नागरिकों को जकड़े हुए है जो बेटियों के बाप हैं, गरीब हैं।

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मनुष्य जिस समाज में रहता है, उस समाज से उस मनुष्य का गहरा संबंध होता है। समाज में यदि कोई भी बुराई फैलती है तो उस बुराई से प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष किसी ना किसी रूप से वो मनुष्य भी प्रभावित होता है। मानसिक रूप से सोचकर ही क्यों न हो, होना भी चाहिए, क्योंकि समाज में यदि कोई बुराई फैलती है तो आराम-आराम से ही सही पर वो बुराई पूरे समाज को अपने गिरफ्त में ले लेती है जिसका दुष्प्रभाव समूचे राष्ट्र पर पड़ने लगता है। चाहे वो राष्ट्र की बदनामी के रूप में हो या आर्थिक एवं नैतिक पतन के रूप में।
इस पुस्तक में दहेज प्रथा रूपी सामाजिक बुराई पर संक्षिप्त प्रकाश डाला गया है, जो कुप्रथा का रूप ले चुकी है, जिससे भारतीय समाज मुक्त नहीं हो पा रहा है। यह प्रथा आजादी के सत्तर साल बाद भी आर्थिक गुलामी के रूप में उन नागरिकों को जकड़े हुए है जो बेटियों के बाप हैं, गरीब हैं।

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