Description
अलका अग्रवाल आगरा के साहित्यिक समाज के मध्य एक प्रतिष्ठित नाम है। एक सुघड़ गृहिणी और गुणी अध्यापिका होने के साथ ही इनकी लेखनी भी अति सशक्त है। प्रस्तुत कविता-संग्रह इनकी उसी सशक्त लेखनी का प्रमाण है। यह कविता-संग्रह पाठक को अपने साथ एक विचित्र-सी दुनिया में ले चलता है। एक ऐसी जादुई दुनिया, जिसमें पल में पाठक जमीन पर होता है तो दूसरे ही पल आसमान की सैर करता हुआ अनुभव करता है। प्रत्येक कविता, संग्रह की अन्य कविताओं से एकदम हटकर है।
अलका जी का काव्य-संसार बहुत ही वृहद् है। छोटे-छोटे बच्चों के खेल-कूद, धमा-चौकड़ी मचाते और विभिन्न कार्यकलापों को बयान करती रचना ‘बच्चे भी न’ हो अथवा “प्रकृति में जो भी जड़ है, इरादों में अपने दृढ़ है,” की पंक्तियों के द्वारा मानव को दृढ़ निश्चयी बनने का संदेश देती रचना ‘मानव और प्रकृति’ हो । चाहे श्रृंगार रस से भरी रचना ‘मिलन की बेला’ की पंक्तियाँ “डाल-डाल पर फूल बौराए, अंतर में कस्तूरी है” हो ।
जैसा कि ऊपर कहा गया है कि इस कविता संग्रह की प्रत्येक कविता का रंग एकदम अलग ही मिलता है। ‘राम की ललकार’ नामक कविता में कवयित्री की कल्पना देखिए कि जहाँ राम और रावण एक-दूसरे के शत्रु हैं। राम द्वारा रावण को युद्ध में मरणासन्न कर दिया जाता है, तब भी राम के मन में अपने शत्रु रावण के प्रति कोई मैल नहीं है, कोई ईर्ष्या-द्वेष नहीं है, कोई क्रोध नहीं है। वे लक्ष्मण को जीवन की महत्त्वपूर्ण शिक्षा प्राप्त करने के लिए मरणासन्न रावण के पास भेजते हैं और पंक्तियाँ आती हैं कि, – “दुश्मन से भी प्रेम करो, जग में बनकर राम रहो।”
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