Sale!

Bolte chitr बोलते चित्र

Original price was: ₹160.00.Current price is: ₹144.00. incl. GST

Looking for coupon codes? See ongoing discounts

कहा जाता है कि जब तक परिवार साथ में खड़ा न हो तब तक पुरुष हो या फिर महिला.
सफलता कोसों दूर ही रहती है।
‘मैं’ हार्दिक आभार व्यक्त करती हूँ. …
अपने परिवार का जो हमेशा मेरे साथ मेरा स्तंभ बन कर खड़ा रहा और अपने मम्मी-पापा अपने सभी गुरुजनों का जिन्होंने शुद्ध आचार-विचार, संस्कार और शुद्ध हिंदी भाषा के बीज मेरे अंदर रोपित किए जो आज वृहद वृक्ष का रूप लेकर ‘बोलते चित्र’ के रूप में लहलहा रहे हैं और समाज के प्रति मेरे दायित्व की भूमिका का निर्वहन भी करवा रहे हैं।
प्रिय पाठकों, सुधिजनों मेरी पुस्तक ‘बोलते चित्र’ की समस्त कविताएँ न केवल चित्रों की अभिव्यक्ति हैं वरन् चित्रों की जीवंत मनोदशा भी हैं।
इन चित्रों में कई ऐसे भी चित्र हैं जो मैंने रूबरू हो कर जिए हैं और उस चित्र के साथ जुड़े हर भाव को चाहे वह सुख का हो या फिर दर्द या पीड़ा का मैंने स्वयं अपने हृदय में अनुभव किया है।
‘बोलते चित्र’ पुस्तक का सारा श्रेय मेरी अभिव्यक्ति के व्हाट्सएप ग्रुप को जाता है, जहाँ हर शुक्रवार एक चित्र को दे कर शब्दों की अभिव्यक्ति का जन्म होता है।
चित्र के गर्भ से शब्दों में प्रसव पीड़ा उत्पन्न होती है और जन्म होता है…
हुबहू चित्र जैसी आकृति लिए हुए एक कविता का जिसका नाम चित्र निर्धारित करता है।

10 in stock

Purchase this product now and earn 1 Reward Point!
Buy Now
SKU: AP-6252 Category: Tag:
Report Abuse

Description

अलका अग्रवाल आगरा के साहित्यिक समाज के मध्य एक प्रतिष्ठित नाम है। एक सुघड़ गृहिणी और गुणी अध्यापिका होने के साथ ही इनकी लेखनी भी अति सशक्त है। प्रस्तुत कविता-संग्रह इनकी उसी सशक्त लेखनी का प्रमाण है। यह कविता-संग्रह पाठक को अपने साथ एक विचित्र-सी दुनिया में ले चलता है। एक ऐसी जादुई दुनिया, जिसमें पल में पाठक जमीन पर होता है तो दूसरे ही पल आसमान की सैर करता हुआ अनुभव करता है। प्रत्येक कविता, संग्रह की अन्य कविताओं से एकदम हटकर है।
अलका जी का काव्य-संसार बहुत ही वृहद् है। छोटे-छोटे बच्चों के खेल-कूद, धमा-चौकड़ी मचाते और विभिन्न कार्यकलापों को बयान करती रचना ‘बच्चे भी न’ हो अथवा “प्रकृति में जो भी जड़ है, इरादों में अपने दृढ़ है,” की पंक्तियों के द्वारा मानव को दृढ़ निश्चयी बनने का संदेश देती रचना ‘मानव और प्रकृति’ हो । चाहे श्रृंगार रस से भरी रचना ‘मिलन की बेला’ की पंक्तियाँ “डाल-डाल पर फूल बौराए, अंतर में कस्तूरी है” हो ।
जैसा कि ऊपर कहा गया है कि इस कविता संग्रह की प्रत्येक कविता का रंग एकदम अलग ही मिलता है। ‘राम की ललकार’ नामक कविता में कवयित्री की कल्पना देखिए कि जहाँ राम और रावण एक-दूसरे के शत्रु हैं। राम द्वारा रावण को युद्ध में मरणासन्न कर दिया जाता है, तब भी राम के मन में अपने शत्रु रावण के प्रति कोई मैल नहीं है, कोई ईर्ष्या-द्वेष नहीं है, कोई क्रोध नहीं है। वे लक्ष्मण को जीवन की महत्त्वपूर्ण शिक्षा प्राप्त करने के लिए मरणासन्न रावण के पास भेजते हैं और पंक्तियाँ आती हैं कि, – “दुश्मन से भी प्रेम करो, जग में बनकर राम रहो।”

 

Additional information

Language

Publisher

Condition

Reviews

There are no reviews yet.

Only logged in customers who have purchased this product may leave a review.

Loading...

Seller Information

Product Enquiry