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ATI SANKSHIPT YOG VASHISHT (अति संक्षिप्त योग वशिष्ट)

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योग वासिष्ठ एक अनमोल ग्रन्थ है, इसके पढ़ने और लिखने से और सद्गुरुओं से सुनने से अनुपम ज्ञान की उपलब्धि होती है। इसका ज्ञान जीवन के लिये वह रसायन है जो सारे जीवन को आनन्दमय कर देता है। सुख-दुःख में समता पैदा करता है। अहंता, ममता को तिरोहित करता है। और सारे जगत को ब्रह्मरूप समझकर ब्रह्म की विशालता का अनुभव होता है। यदि जगत ब्रह्म का रूप अज्ञान के कारण मानव नही समझता तो उसे सारा जगत सत्रूप दिखाई देता है। लेकिन जगत की सत्ता है ही नहीं यह न प्रारम्भ में था न मध्य में है न अन्त में होगा यह ज्ञान इस ग्रन्थ से विभिन्न उपमाओं के द्वारा प्राप्त होता है।
मासपिण्ड की देह वास्तविक वस्तु नहीं है, इसमें चेतन ही वास्तविक तत्व है। जिसका हृदय हर्ष विषाद से हीन, सम हो गया है, सुख-दुख में समता को प्राप्त हो गया हैं, चित्त के अहंकार को जिसने जड़मूल से मिटा दिया है, कृर्तृत्व भोक्तृत्व का अहंभाव जिसके मन से मिट गया है, संसार जिसे मिथ्या लगता है, उसे फिर सृष्टि का राज्य भी मिलता हो वह भी उसे तृण के समान तुच्छ लगता है।
यह संहिता मोक्ष प्रदान करने वाली सारभूत अर्थ प्रकट करने वाली है। इसके छः प्रकरण सभी सारगर्भित है। जिसका पुण्य कल्पवृक्ष के समान-फलों के भार से झुका हुआ है, वही प्राणी मुक्ति का इच्छुक इसके सुनने के लिये प्रयत्न करता है। पाठकों की माँग को देखते हुये इसे संक्षिप्त करके लिखा गया है। पाठक इसकी उपयोगिता को देखते हुये इसे पढ़कर इसके लाभ को अपने हृदय में अनुभव करें।

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योग वासिष्ठ एक अनमोल ग्रन्थ है, इसके पढ़ने और लिखने से और सद्गुरुओं से सुनने से अनुपम ज्ञान की उपलब्धि होती है। इसका ज्ञान जीवन के लिये वह रसायन है जो सारे जीवन को आनन्दमय कर देता है। सुख-दुःख में समता पैदा करता है। अहंता, ममता को तिरोहित करता है। और सारे जगत को ब्रह्मरूप समझकर ब्रह्म की विशालता का अनुभव होता है। यदि जगत ब्रह्म का रूप अज्ञान के कारण मानव नही समझता तो उसे सारा जगत सत्रूप दिखाई देता है। लेकिन जगत की सत्ता है ही नहीं यह न प्रारम्भ में था न मध्य में है न अन्त में होगा यह ज्ञान इस ग्रन्थ से विभिन्न उपमाओं के द्वारा प्राप्त होता है।
मासपिण्ड की देह वास्तविक वस्तु नहीं है, इसमें चेतन ही वास्तविक तत्व है। जिसका हृदय हर्ष विषाद से हीन, सम हो गया है, सुख-दुख में समता को प्राप्त हो गया हैं, चित्त के अहंकार को जिसने जड़मूल से मिटा दिया है, कृर्तृत्व भोक्तृत्व का अहंभाव जिसके मन से मिट गया है, संसार जिसे मिथ्या लगता है, उसे फिर सृष्टि का राज्य भी मिलता हो वह भी उसे तृण के समान तुच्छ लगता है।
यह संहिता मोक्ष प्रदान करने वाली सारभूत अर्थ प्रकट करने वाली है। इसके छः प्रकरण सभी सारगर्भित है। जिसका पुण्य कल्पवृक्ष के समान-फलों के भार से झुका हुआ है, वही प्राणी मुक्ति का इच्छुक इसके सुनने के लिये प्रयत्न करता है। पाठकों की माँग को देखते हुये इसे संक्षिप्त करके लिखा गया है। पाठक इसकी उपयोगिता को देखते हुये इसे पढ़कर इसके लाभ को अपने हृदय में अनुभव करें।

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