Description
प्रातःस्मरणीय स्व. माँ और बाबूजी, जिन्होंने जीवन-पथ पर डेग उठाकर चलना सिखाया; मेरी धर्मपत्नी, जिनके सानिध्य ने नैसर्गिक प्रेम की अनुभूति दी; मेरे प्यारे-दुलारे बच्चे, जिनकी वात्सल्यपूर्ण प्रेरणा ने मेरी कलम को तनावमुक्त रहकर लिखने का शुभ अवसर दिया; स्वजन-परिजन एवं गुरुजन, जिनकी प्रेरणाएं, शुभकामनाएं और शुभाशीष सदा मेरे साथ रहा; साथ ही अनुराधा प्रकाशन परिवार और इसके मेरुदंड श्रद्धेय डॉक्टर मनमोहन शर्मा ‘शरण’ जी, जिनके स्नेह-सहयोग से अल्पावधि में ही मेरा ‘अंतर्बोध’ पुस्तक का रूप लिया; सबों का ह्दय से आभारी हूँ.
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