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Akshat by Pushpita Awasthi

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तुम

मेरी एकमात्र पुस्तक हो

मेरे मन का धर्मग्रन्थ तुम

मेरी एकमात्र कविता हो

मेरे सृजन के सच्चे दस्तावेज़

तुम मेरा एकमात्र विश्वास हो

मेरी आत्मा के वास्तविक सहचर

प्रेम का यही अकुंठ भाव इन कविताओं का मूल स्वर है। यह प्रेम-कविताओं का संग्रह है जिनकी कमी इधर आकर बहुत खलने लगी है। कविता के केन्द्र से प्रेम का हटना बेशक जीवन का अनुगमन ही है, क्योंकि जीवन का केन्द्र भी आज प्रेम नहीं है, लेकिन इसीलिए प्रेम अपनी तमाम पारदर्शिताओं, स्वच्छताओं और उदात्तताओं के साथ और भी ज़रूरी हो जाता है। वह एक अमूर्त भाव है लेकिन दुनिया में उसका अभाव हमें किसी चीज़ की तरह कचोटता है, जिसे इतनी तमाम चीज़ों की उपस्थिति भी पूर नहीं पाती।

ये कविताएँ हमें प्रेम की याद दिलाती हैं, उसकी उस ताक़त की याद दिलाती हैं जो हमें देह में देह को और आत्मा में आत्मा को अनुभव करने की क्षमता देता है, हमें ज्‍़यादा सहनशील, सहिष्णु और संसार को ज्‍़यादा रहने लायक़ बनाता है।

तुम

मेरे पास

सुख की तरह हो

जैसे जड़ों के पास ज़मीन

तुम्हारा स्पर्श मुझे छूता है

जैसे सूरज छूता है पृथ्वी।

 

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