Description
गोस्वामी तुलसीदास रचित रामचरितमानस में वर्णित भगवान् श्री राम के जीवन प्रसंगों को नाटक के रूप में मंचन करने की एक अलग ही आनन्द मय अनुभूति होती है। प्रस्तुत पुस्तक में अनेक प्रचलित आख्यानों के साथ साथ स्वरचित अंशों का समावेश किया गया है। सन् 1974 में करीब 350 पृष्ठों का नाटक लिखा, जिसे बाद के वर्षों में प्रतिदिन 3 घंटे की समयावधि के हिसाब से दस दिन में पूरा करने के दृष्टिगत छोटा किया गया। आज यह नाटक रामलीला के मंचन, पाठन, गायन, दर्शन एवं श्रवण में रुचि रखने वाले रसिक जनों के हाथों में है। लेखक को रामलीला के अनेक किरदारों के रूप में मंच पर अभिनय करने का अवसर मिला। राम, भरत, दशरथ, रावण, जनक, परशुराम, बालि, अंगद, जटायु, केवट आदि पुरुष पात्रों के साथ साथ कैकेयी, सुनैना, मन्दोदरी, शबरी आदि स्त्री पात्रों के किरदार विभिन्न मंचों पर निभाना मेरे लिए सौभाग्य की बात थी। दर्शकों का अपार स्नेह और प्रशंसा मिली। लीला निर्देशन, मंच संचालन, दृश्य प्रबंधन और मंचन की अन्य विधाओं में काम करने का मुझे सौभाग्य मिला। दिल्ली के लगभग आधे दर्जन मंचों के अलावा उत्तराखण्ड के विभिन्न मंचों पर काम करने का अवसर मुझे मिला। रावण के पात्र के रूप में दर्शकों का अपार स्नेह मुझे नए प्रयोग करने के लिए प्रेरित करता रहा। उत्तर काण्ड में पांच बार श्री राम का किरदार निभाते हुए नाटक की बारीकियों को समझने का अवसर मिला।
प्रथम दिवस के मंचन की शुरुआत नारद मोह या मातृ – पितृ भक्त श्रवण कुमार के प्रसंग से की जा सकती है। दोनों ही प्रसंग मनभावन और रोचक हैं। पुस्तक में उत्तर और मध्य भारत के दर्शकों की रुचि के अनुसार भाषा, गायन और श्रृंगार को समावेशित करने का प्रयास है। दृष्टान्तों को संवाद, चौपाई, दोहा, राग -रागिनी और शेर (डाइलॉग) आदि के माध्यम से दर्शकों तक सही शब्दों में पहुँचाने का प्रयत्न किया गया है।
आशा है इस नाटक के आधार पर रामलीला का मंचन करने में आयोजकों, पात्रों और दर्शकों /श्रोताओं को आनन्द की अनुभूति होगी और संतुष्टि मिलेगी। यदि इस नाटक के माध्यम से मंचन करने पर पात्रों और दर्शकों/श्रोताओं का भावनात्मक और आध्यात्मिक सम्बन्ध प्रगाढ़ हो पाया तो मैं इसे सफलता मानूँगा।
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