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Aadhunik Bhartiya Chintan by Vishwanath Narvane, Tr. Nemichandra Jain

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आधुनिक भारतीय चिन्तन पर हिन्दी ही नहीं, अन्य भारतीय भाषाओं में भी स्तरीय पुस्तकों का अभाव है। अंग्रेज़ी समेत अन्य विदेशी भाषाओं में उपलब्ध पुस्तकें प्रशंसा या निंदा के अतिवाद का शिकार हैं। साथ ही उनमें भारतीय चिन्तन के नाम पर प्राचीन भारतीय दर्शन का विश्लेषण-विवेचन है।

डॉ. विश्वनाथ नरवणे की पुस्तक ‘आधुनिक भारतीय चिन्तन’ उपर्युक्त अतिवादों से मुक्त है। वे किसी देशी-विदेशी चश्मे से अपने को मुक्त रखते हुए भारतीय चिन्तन के आधुनिक पहलुओं पर विचार करते हैं। इसमें प्रामाणिकता बनाए रखने की पूरी कोशिश है। वहीं समकालीन भारत में हो रहे परिवर्तनों को भी ध्यान में रखा गया है।

प्राचीन काल में भारत चिन्तन के मामले में अग्रणी था। लेकिन अब ऐसी स्थिति नहीं है। फिर भी पिछली दो शताब्दियों में चिन्तन-क्षेत्र में कुछ न कुछ चमक रही है। फिर भी उसके सम्यक् विवेचन-विश्लेषण वाली गम्‍भीर कृति नहीं दीखती। डॉ. नरवणे इसी अभाव को भरते हैं।

इस पुस्तक में भारतीय चिन्तन में नवयुग की शुरुआत करनेवाले राजा राममोहन राय, जिन्होंने पाश्चात्य चिन्तन को आत्मसात् करते हुए भारतीय चिन्तन-परम्परा पर मनन किया, के योगदान और मूल्यांकन का सार्थक प्रयास है। रामकृष्ण परमहंस द्वारा मानवीय दृष्टि अपनाने पर बल दिया गया। विवेकानंद के तेजस्वी चिन्तन, जिसमें धर्म के ऊपर समाज और सत्ता के ऊपर मनुष्य को स्थान देने की पुरअसर कोशिश है, का भी विस्तृत मूल्यांकन पुस्तक में है।

चिन्तन और कर्म की एकता पर बल देनेवाले चिन्तन को रवीन्द्रनाथ ठाकुर और महर्षि अरविंद ने नए आयाम दिए तो गांधी का दर्शन निकला ही कर्म से। महात्मा के दर्शन ने समकालीन दुनिया को प्रभावित किया। सर्वपल्ली राधाकृष्णन् ने भारतीय दर्शन परम्‍परा को और माँजने का प्रयास किया। इसी कड़ी को आगे बढ़ाते हुए डॉ. नरवणे कुमारस्वामी और इक़बाल की चिन्तनधारा तक आते हैं।

डॉ. नरवणे की पद्धति सिर्फ़ चिन्तनपरक लेखन या कथन के विश्लेषण तक सीमित नहीं रहती। पिछले डेढ़ सौ वर्षों में भारतीय मानस को प्रभावित करनेवाले चिन्‍तकों की जीवनियों, उनके साहसपूर्ण संघर्षों और दुर्गम यात्राओं के विवरण तक का उपयोग स्रोत सामग्री के रूप में किया गया है।

महात्मा गांधी, रवीन्द्रनाथ ठाकुर, रामकृष्ण और विवेकानंद जैसे चिन्तक पाश्चात्य चिन्तनधारा के समक्ष हीनभाव से नतमस्तक नहीं होते। वे अपने विश्वासों, आस्थाओं, भावनाओं या अविश्वास के लिए लज्जित नहीं होते। वहीं उनमें पाश्चात्य दर्शन के प्रति उपेक्षा भाव भी नहीं है। भारतीय चिन्तनधारा में इतिहास ही नहीं, भूगोल विशेषकर हिमालय, समुद्र और सदानीरा नदियों के योगदान का पता भी इस पुस्तक से चलता है।

कला और संगीत पर कम, पर साहित्य-चिन्तन पर अनेक उच्चस्तरीय कृतियाँ हैं पर उन आधुनिक चिन्तनधाराओं के अध्ययन का सार्थक प्रयास नहीं दीखता जिनके ऊपर हमारी सांस्कृतिक प्रगति टिकी हुई है। यह शायद इसलिए कि चिन्तन का विवेचन करना अत्यन्त कठिन काम है।

इस चुनौती का वरण डॉ. नरवणे ने किया है। वे आधुनिक भारतीय चिन्तन की बारीकियों और गुत्थियों को सुलझाने में कामयाब हुए हैं।

इस पुस्तक को न केवल भारतीय बौद्धिकता बल्कि दुनिया-भर के विद्वानों की सराहना मिली है। अरसे से अनुपलब्ध इस बहुचर्चित पुस्तक के प्रकाशन का अपना विशेष महत्त्व है।

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Weight 510 g
Dimensions 22 × 15 × 2 cm
Book Author

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Publisher

Language

Pages

342

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