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वनराज (खण्ड-दो) (Vanraj Part – 2)

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वनराज-खण्ड-दो-vanraj-part-2

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Description

वह खड़े-खड़े ही आसपास के वातावरण को देखकर प्रसन्न होता रहा। पूर्व दिशा में फैली अरुणिमा को देखकर उसने तारा को जगाना उचित समझा। वह निकट जाकर ओढ़े हुये आवरण को हटा दिया और तारा की खुली हुई देह को देखने लगा। यद्यपि वनराज की के लिए कुछ भी अदृश्य में नहीं है लेकिन वह किसी की तरफ भर नजर देखता ही नहीं, ऐसी उसकी आदत है। हमेशा साथ रहने वाली तारा की खुली देह को नहाते हुए और कपड़े बदलते हुए कई दफा देख चुका है, परन्तु देखते हुए भी बहुत कुछ अनदेखा रह जाता था। आज वह सम्पूर्णता के साथ नारी देह को देखना चाह रहा था। आज उसकी नजरें तारा की खुली देह से चिपक-सी गईं थी।

Additional information

Dimensions 14 × 1 × 22 cm
Publisher

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Binding

Pages

238

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