Description
पूरी दुनिया में मनुष्य ने विकास के नाम पर पर्यावरण और प्रकृति से युद्ध छेड़ रखा है और प्राकृतिक संसाधनों का अंधाधुंध दोहन इस हद तक किया जा रहा है कि वैज्ञानिकों को पृथ्वी से जीवन समाप्त होने की चेतावनी बार-बार जारी करनी पड़ रही है| दार्शनिक फ्रेडेरिक ऐगेल्स ने 1850 के दशक में कहा था, “प्रकृति पर अपनी विजय से हमें आत्मप्रशंसा में विभोर नहीं होना चाहिए क्योंकि प्रकृति हरेक ऐसी पराजय का हमसे बदला लेती है”| यह कथन अब पानी की भयानक कमी, विषैली हवा, भूमि की घटती उत्पादकता, महासागरों के बढ़ते तल के कारण किनारों के डूबने, वन्य जीवों से पनपने वाली महामारी, चक्रवात, बाढ़, सूखा और अत्यधिक गर्मी के तौर पर सही साबित होने लगा है| पृथ्वी के ध्रुवों और पहाड़ों की चोटियों पर जमी बर्फ तेजी से पिघलने लगी है,
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