Description
‘आचार्यदेवो भव’ -शीर्षक से विरचित यह पारम्परिक शास्त्रमग्न रचना इन्हीं विषिष्टतम दिग्गज/उद्भट गुरुओं, शिक्षकों, आचार्यों को समग्र समग्र श्रद्धा, भक्ति, विश्वास और आस्था के साथ सादर सादर समर्पित है। ‘गुरुपद’ पर रहते हुए भी कुछ तथाकथित लोगों ने वर्तमान में गुरुपद का अवमूल्यन किया है, अवमानना की है, उनके भी कुछ ‘शब्दचित्र’ इस प्रस्तुत रचना ‘आचार्यदेवो भव’ में अवश्यमेव प्रकल्पित हैं, उपस्थापित हैं, सम्मिलित हैं ।
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