Description
कहानी की नायिका बचपन से अपनी मां को शक्ति के रूप में देखकर अपने भीतर ऊर्जा ग्रहण करती है और बड़ी होकर समाज में महिलाओं के प्रति गलत रवैया और गलत व्यवहार को ठीक करने के लिए पुलिस की नौकरी करना चाहती है। प्रिया के जीवन में आने वाली तमाम कठिनाइयों को लेखिका ने बहुत ही खूबसूरती से उजागर किया है और हर पंक्ति में यह प्रकट हुआ है कि लड़कियां लड़कों से कम नहीं होती । माता पिता से ही संस्कार पाते हैं बच्चे,ये भी एक संकेत मझे दिखाई दिया इस कथा में। महिला सशक्तिकरण की एक बहुत ही सशक्त मिसाल है कुसुम जी की यह कहानी “संघर्ष कब तक।” किसी भी विधा के लेखन के लिए चिंतन जीवन में जितना अनिवार्य है उतना ही अनिवार्य उसका प्रस्तुतीकरण। हम सब जानते है चिंतन एक महत्वपूर्ण प्रक्रिया है
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