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TAY HAI PHOOLON KA KHILNA (तय है फूलों का खिलना)

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1991 से शुरु हुई लेखन-यात्रा में अब तक 20000 कविताएँ और 500 कहानियाँ लिखीं। 1991 से 2016 तक तमाम सामाजिक व्यक्तिगत कार्यों के लिए किए गए प्रयास में असफलताएँ मिली लेकिन लेखन जारी रहा। अफसोस यही रहा कि इतने लम्बे समय में कोई बड़ा उपन्यास न लिख सका। मैं क्यों लिखता हूँ इसका ठीक-ठीक कारण तो मुझे पता नहीं। शायद मेरी असफलताओं के कारण मिले एकान्त के कारण दुःख की उपज है मेरी रचनाएँ या जिन वजहों से मैं समाज से, लोगों से सामंजस्य न बना पाया वो था । मेरा स्वभाव और समाज का दोगलापन, खोखलापन, मतलबपरस्ती और केवल सम्पन्नता का सम्मान करना इन्हीं विद्रूपताओं के कारण कलम का सहारा लिया या । जब सबने छोड़ा तो कलम ने अपना लिया। अब तो लिखने के लिए कितना कुछ है।

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1991 से शुरु हुई लेखन-यात्रा में अब तक 20000 कविताएँ और 500 कहानियाँ लिखीं। 1991 से 2016 तक तमाम सामाजिक व्यक्तिगत कार्यों के लिए किए गए प्रयास में असफलताएँ मिली लेकिन लेखन जारी रहा। अफसोस यही रहा कि इतने लम्बे समय में कोई बड़ा उपन्यास न लिख सका। मैं क्यों लिखता हूँ इसका ठीक-ठीक कारण तो मुझे पता नहीं। शायद मेरी असफलताओं के कारण मिले एकान्त के कारण दुःख की उपज है मेरी रचनाएँ या जिन वजहों से मैं समाज से, लोगों से सामंजस्य न बना पाया वो था । मेरा स्वभाव और समाज का दोगलापन, खोखलापन, मतलबपरस्ती और केवल सम्पन्नता का सम्मान करना इन्हीं विद्रूपताओं के कारण कलम का सहारा लिया या । जब सबने छोड़ा तो कलम ने अपना लिया। अब तो लिखने के लिए कितना कुछ है। एक देश में अनेक जाति, धर्म, भाषा के लोग और कोई भी भारतीय नहीं। भ्रष्टाचार, महँगाई से लेकर धर्म राजनीति सभी विषयों पर दुःख और लानत के फलस्वरूप गुस्से से उपजता है मेरा लेखन। मेरी शैली मूलत व्यंग्य है। आरम्भ में हास्य लिखता था। लिखने के बाद जूझना पड़ता है प्रकाशन के लिए। वीणा जैसी पत्रिकाएँ ढांढस बांधती हैं। साहित्यिक, राजनीति, साहित्यिक बाजार और साहित्य गुटबाजी के बीच मुझ जैसे लेखक बचे रहे और बेहतर लिखते रहे यही हमारी सफलता है। रोटी, कपड़ा, मकान और जीवन की जरूरतों के मध्य शासन प्रशासन की कुद्रष्टी से स्वयं को बचाए रखना और लिखते रहना मेरी अभिलाषा है।
अब तक 53 संग्रह प्रकाशित हो चुके हैं जिसमें 35 काव्य संग्रह और 16 कथा संग्रह, एक लघुकथा संग्रह, एक व्यंग्य संग्रह प्रकाशित हो चुका है। एक कथा संग्रह प्रकाशनाधीन है। सन् 1991 से देश भर की पत्र-पत्रिकाओं में रचनाएं प्रकाशित हो रही हैं।

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