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Akshar Katha by Gunakar Muley, Ed. Shanti Gunakar Muley

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प्राचीन नदीघाटी सभ्यताओं में जब नगरों की स्थापना होने लगती है, तब पहली बार लिपियाँ जन्म लेती दिखाई देती हैं। यह कोई छह हज़ार साल पहले की बात है।

वर्णमालात्मक लिपियाँ ई.पू. दसवीं सदी के आसपास पहली बार जन्म लेती हैं। तब से आज तक लिपियों का विशेष विकास नहीं हुआ। बहुत-सी पुरालिपियाँ मर गई हैं, उनका ज्ञान भी लुप्त हो गया। पिछले क़रीब दो सौ वर्षों में संसार के अनेक पुरालिपिविदों ने पुन: उन पुरालिपियों का उद्घाटन किया है।

इस ग्रन्थ में गुणाकर जी ने मुख्यत: संसार की प्रमुख पुरालिपियों की जानकारी दी है। पाठक इससे जान जाएँगे कि किस देश में कौन-सी लिपि का अस्तित्व था, उसका स्वरूप कैसा था, उसके संकेत या अक्षर कैसे थे और आधुनिक काल में उन पुरालिपियों का उद्घाटन कैसे हुआ।

पुस्तक के दूसरे खंड में भारतीय लिपियों की जानकारी है। आरम्भ में सिन्धु लिपि (अज्ञात) तथा खरोष्ठी लिपि का विवरण है। फिर ब्राह्मी लिपि के उद्भव तथा विकास के बारे में यथासम्भव पूरी जानकारी दी गई।

पुस्तक का परिशिष्ट संसार के प्रमुख भाषा-परिवारों पर केन्द्रित है।

भाषा सम्बन्धी जिज्ञासु पाठकों और छात्रों के लिए प्रामाणिक तथ्यों, चित्रों और तालिकाओं से समृद्ध यह पुस्तक निश्चित रूप से उपादेय होगी।

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